हिंदी सिनेमा की तीन ब्लॉकबस्टर फिल्में ‘सुल्तान’, ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘सुल्तान’ निर्देशित कर चुके निर्देशक अली अब्बास जफर पांच साल बाद बड़े परदे पर लौटे हैं। इस बीच उनकी निर्देशित दो और फिल्में ‘जोगी’ और ‘ब्लडी डैडी’ सीधे ओटीटी पर रिलीज हुईं। अली अब्बास जफर की नई फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ का इसी नाम की 1998 में रिलीज फिल्म से कुछ लेना देना है तो बस इतना कि अमिताभ बच्चन और गोविंदा की इस फिल्म के नाम से ही फिल्म के एक मिशन को नाम मिलता है। मौका ईद का है। बड़े का नाम फिरोज उर्फ फ्रेडी है। छोटा राकेश उर्फ रॉकी है। और, इनका एक तीसरा दोस्त है, कबीर। तीन हीरो वाली फिल्मों का हिंदी सिनेमा में लंबे समय तक चलन रहा है। अली अब्बास जफर ‘त्रिदेव’ और ‘विश्वात्मा’ जैसी फिल्मों को इस फिल्म का संदर्भ बिंदु बताते रहे है। अब बारी ‘बड़े मियां छोटे मियां’ की है।
ईद के मौके पर रिलीज होने वाली फिल्मों का डीएनए परंपरागत तरीके से दर्शकों का विशुद्ध मनोरंजन ही रहा है। अली अब्बास जफर भी अपनी लेखन टीम के साथ यहां यही कोशिश करते हैं। कहानी दो बिगड़ैल फौजियों की है। दोनों की उम्र में अंतर तो काफी है लेकिन दोनों की रैंक एक ही है। कहानी वर्तमान से शुरू होती है जहां हथियारों के एक सौदागर ने सेना का एक गोपनीय ‘पैकेज’ लूट लिया है। पता ये चलता है कि ये काम करने के लिए फ्रेडी और रॉकी सबसे मुफीद हैं। कहानी आठ साल पहले दोनों को उस आतंकवादी का खात्मा करते दिखाती है जिसे दुनिया मरा मान चुकी है। फिर सात साल पहले की एक क्षेपक कथा सामने आती है जो इनके दोस्त कबीर का अतीत बताती है। आगे-पीछे चलती कहानी में वर्तमान की चुनौती गंभीर है। सेना के लिए अरसे से चर्चा में रहे मशीनी योद्धाओं से आगे जाकर फिल्म का विलेन काबिल योद्धाओं की प्रतिकृतियां तैयार करने की नई तकनीक तैयार कर चुका है। लेकिन, भारत अब विकसित देश है। उसके पास एक ऐसी तकनीक तैयार हो चुकी है जिससे कोई भी बाहरी हमला नाकाम किया जा सकता है। तकनीक बनाम तकनीक के बीच आगे पीछे डोलती इस कहानी को अली अब्बास जफर ने एक ऐसी एक्शन फिल्म का रूप दिया है जिसके बीच बीच में दोनों नायकों के आपसी हंसी मजाक से हास्य भी उपजता है।
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